गुरुवार, 30 सितंबर 2010

30 सितम्‍बर 2010 का दिन

30 सितम्‍बर 2010 का दिन दहशत जिज्ञास और बोरियत से भरा दिन रहा । सुबह सब्‍जी लेने गया तो घंटाघर के पास पुरानी सब्‍जी मंडी में दो तीन दुकाने ही खुली थी मुझे लगा आज शायद सब्‍जी कम आई होगी । मैं नई सब्‍जी मंडी पहुंचा वहॉं भी पूरी मंडी में केवल दो तीन दुकाने खुली थी । सड़कों पर लगभग सन्‍नाटा था । आम दिनों में देर रात तक खुली रहने वाली पान दुकाने भी बंद थी । रास्‍ते में जो भी मिल रहा था अजीब सी दहशत चिंता और जिज्ञासा से भरा था । महेश पान वाले से रास्‍तें में मैंने पूछा क्‍या आज पान भी नहीं खिलाओगे । रीगल स्‍टूडियो वाले अशफाक के चाचा ने यह सुन लिया वे भी बोले पान तो खिलाना चाहिए । महेश ने बताया कि वह खाना खाने घर जा रहा है मैंने कहा तब रहने दो पर वह जिद पर अड़ गया नहीं आपके लिए तो दुकान खोलकर पान लगाऊंगा । मैंने बहुत समझाया पर वह अड़ गया कि आपने पहली बार तो ऐसे कहा है वह जिद करके दुकान पर ले गया । उसने कहा शाम का कोई ठिकाना नहीं दो चार बंधवा भी लो । इतने में खालिक जो मेरे खेड़ीपुरा के घर के सामने रहता था ने केवल मेरा बालसखा रहा उसके परिवार से तीन पीढि़यों के रिश्‍ते थे वह मेरी नानी के गॉंव बिछौला का रहने वाला था उसके पिता नूर मोहम्‍मद और चाचा मंगा को हम इसी कारण मामा कहते थे । अब तो खालिक के अब्‍बा नूरू मामा भी नहीं रहे । पर मेरी नानी के निधन के बाद वे भी नर्मदा किनारे हंडिया तक गये थे यह मुझे अच्‍छे से याद है । खालिक पता नहीं आज क्‍यों इतनी तेजी से निकल गया कि मुझे अचरज और अच्‍छा नहीं लगा । सुबह गांव से जहूर का फोन आया कि भैया सुना है हरदा में कफ़र्यू लग गया है मैंने पूछा कौन बेवकूफ ने कहा । वह वोला ऐसा सुना है । मैंने समझाया यह महज अफवाह है । उसने भी कहा भैया अपना ख काई लेनू देनू । सब फालतू की बात थी । यह जहूर वही है जिसके दादा भारत विभाजन के समय गॉंव छोड़कर जाना चाह रहे थे और मेरे दादा स्‍व0 रामशंकर पटेल ने उन्‍हें न केवल रोका छह माह तक अपने घर में भी रखा । शक सुबहे का माहौल पिछले कई दिनों से चल रहा था । शाम को मैं पलासनेर अजातशत्रु के गांव ज्ञानेश चौबे और नरेन्‍द्र शर्मा नेव्‍हर फैल के साथ चला गया । दो घंटे हम पलासनेर में ही रहे । अजातशत्रु ने हमें लता मंगेशकर का सोलह वर्ष की उम्र में फिल्‍म बिहारी के लिए गाया गीत सुनवाया । शहर में सन्‍नाटा कुछ कम हो रहा था । पर वह रौनक नहीं आ पाई थी । मुझे आज जितनी बेचैनी रही जीवन में कम ही आई । पिछले कुछ दिनों से अपना निशाचर स्‍वभाव भी छोड़ चुका हँू । बारह बजे तक सो ही जाता हँू । आज पुराने साथी और मेरे कॉलेज की जनभागीदारी समिति के अध्‍यक्ष राजेश वर्मा के साथ रात के एक बजे तक रेल्‍वे स्‍टेशन पर बैठा दुख सुख की बाते करता रहा । पूरी रेल्‍वे स्‍टेशन खाली थी जो रेल गई वह भी पूरी खाली थी । बहुत सारा सामान लेकर एक नव युवा आया वह अपने आपको पंजाब का सैनिक बता रहा था और नागपूर जाने के लिए कोई मदद मांगने लगा हमने उससे कहा नागपूर के लिए फिलहाल कोई गाडी नहीं है । आप कहीं रुक जाओ पर वह कहने लगा कितने भी पैसे लग जाये पर आज और अभी ही जाना है वह नशे में भी था उसको कोई कुली भी नहीं मिल रहा था न कोई मदद । आखिर एक आटो वाला उसको बाहर ले ही गया । मैंने हरदा रेल्‍वे स्‍टेशन को इतना सुनसान कभी नहीं देखा था । मेरे शहर मेरे शहर की सड़कें और लोगों को इतना बे रौनक और अनमना मैंने कभी नहीं देखा था । मैं अपने शहर को इस हाल में कभी नहीं देखना चाहता । रात के डेढ़ बज रहे हैं मुझे नींद नहीं आ रही अपने खजाने में कुछ पुराने फोटोग्राफ देख रहा हँू । एक फोटो कला गुरु विष्‍णु चिंचालकर के साथ का है जब वे हरदा आये थे एकलव्‍य संस्‍था के बुलावे पर । दूसरा फोटो बाबा नागार्जुन के साथ का है जब वे एकलव्‍य के केन्‍द्र निदेशक अनवर जाफरी से मिलने हरदा आये थ्‍ो और एकलव्‍य में दो तीन दिन रुके थे । यह समय संभवत: 1990 का है । बीस साल पहले का ।