सोमवार, 7 नवंबर 2011

श्री शरद पटाले - दुख ही जीवन की कथा रही


दुख ही जीवन की कथा रही

            आज ही नई दिल्‍ली से लौटा हॅू । शाम को जैसे ही मित्रों से पता चला कि श्री शरद पटाले का आज हार्ट अटैक से निधन हो गया । मन अवसाद से भर गया । कई चीजें एक साथ घूमने लगी । श्री पटाले के विषय में निराला की पंक्ति बार बार कौंधने लगी ' क्‍या कहूं जो अब तक नहीं कही, दुख ही जीवन की कथा रही ' अब हरदा में शायद ही कोई जनसत्‍ता जैसा अखबार पढवा पायेगा । श्री पटाले एक स्‍वतंत्रता संग्राम सेनानी परिवार में जन्‍में । संघर्ष उन्‍हें विरासत में मिला । क्‍या पता उन्‍हें जीवन के रुक जाने का आभास था या कुछ कि वे अपनी ऑंख दान कर गये । पत्रकार पवन तिवारी ने बताया कि उनकी ऑंखे आई बैंक को सौपी जा चुकी है । कुछ पी‍ढी पहले उनका परिवार अच्‍छी खासी आर्थिक स्थिति में था । पर सच्‍चे गांधीवादी  स्‍वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने जीवन में अपने परिवार के  लिए शायद ही कुछ कर पाये हों । उनके बाबा और पिता भी ऐसा कुछ नहीं कर सके । उनके घर में कभी जाओ तो बहुत शिद़दत से तकलीफे दिखती थी । जो लोग उन्‍हें नजदीक से जानते हैं वे इसे महसूस करते होगें । देश में ऐसे कई स्‍वतंत्रता संग्राम सेनानी परिवार है जिन्‍हें जमाने से कुछ नहीं मिला । सिवा गरीबी, जिल्‍लत और अपमान के । आजीविका के लिये उनका परिवार बहुत सामान्‍य से कार्य करता रहा । बहने शिक्षिकाऍं हो गयी और भाई तरंग पुस्‍तकालय चलाने लगे ।अब शायद कम ही लोग जानते होगें कि हरदा में कभी तरंग पुस्‍तकालय में अच्‍छी खासी साहित्यिक पुस्‍तक पत्रिकाऍं मिलती थी । पर भला साहित्यिक पुस्‍तकों को पढवा कर कोई पेट तो नहीं पाल सकता । उन्‍होंने जीवन भर अखबार हॉकर का काम किया । हम जैसे कुछ लोगों के लिए वे किसी तरह जोड तोड कर अच्‍छे साहित्यिक पत्र पत्रिकाऍं हरदा बुलाते थे । कोई अच्छी सामग्री आ जाती तो खुद घर आकर वह पत्रिका दे जाते । पैसों का हिसाब किताब वे कभी ठीक से नहीं रख पाये । आदमी हिसाबी थे भी नहीं । पर जिंदगी के अभाव उन्‍हें बदल नहीं सके । मूल्‍यों पर टिके रहना बडी बात है । वे तमाम उम्र मूल्‍यों पर टिके रहे । जमाने में दिन ब दिन आ रही अनैतिक चीजों के खिलाफ वे हमेशा भुनभुनाते कुडकुडाते मिलते । खरा खरा बोलना उनका स्‍वभाव बन चुका था । मुझे कई बार लगता था कि यह आदमी किसी दिन रक्‍तचाप या शुगर का शिकार हो जायेगा । प्रचलित दुनियावी मानदंडों पर वे बडे आदमी नहीं थे । न बडे अफसर थे न कोई राजनेता न कोई अन्‍य ओहदा । मामूली अखबार हॉकर थे । दिन दिन भर अखबार बाटते । जमाने की दशा पर दुखी होते रहते । परिवार में बहनों  और छोटे भाई का विवाह नहीं हो सका । खुद ने भी बहुत देर से गृहस्‍थ जीवन में प्रवेश किया । पत्‍नी भी चुनी तो रंगकर्मी । बच्‍चों को भी संस्‍कार दिये तो रंगकर्म गायन और संगीत के । मेरे भाई पटाले  बताओ क्‍या इस बाजारु  समय में ये चीजे घर चलाती हैं । मुझे स्‍वतंत्रता संग्राम सेनानियों पर शोध करते हुए उन्‍होंने बहुत मदद की । लक्ष्‍मीबाई जलखरे के परिवार की तकलीफो से उन्‍होंने ही परिचय करवाया । मराठी के बहुत से दस्‍तावेजों का अनुवाद उन्‍होंने अपनी बडी बहन लीलाताई से करवाकर मुझे दिये । श्री पटाले जीवन भर अपने तरीके से ही चले । कभी सस्‍ते रास्‍तों का अनुसरण नहीं किया । हरदा के तमाम जिम्‍मेदार लोगों से उम्‍मीद है कि अंधेरे में गुमनामी में मिटते ऐसे परिवारों के प्रति कुछ सोचे कुछ करें । यही उनको सच्‍ची श्रध्‍दांजलि होगी । पटालेजी आप हमेशा याद आओगे । अलविदा------- ।

रविवार, 19 जून 2011

कारेआम पातालकोट का सफर


बहुत दिनों के बाद बल्कि कहिए सालों के बाद कॉलेज से चंद दिनों की मोहल्‍लत मिली थी । सबकुछ भूलकर मैं पातालकोट भाग गया । भारिया जनजाति के लोगों के बीच । खूब मजा आया । धरती से लगभग तीन हजार फीट नीचे होगा पातालकोट का कारेआम गॉंव । वैसे पहाडी के ऊपर लिखा है ढाई किलोमीटर दूर । मेरे साथ राजेन्‍द्र मालवीय और कृष्‍णा वशिष्‍ठ भी थे । कारेआम से हमें लेने मौजीलाल और वरुण आये थे । सुशीला और सेवंती योग से अतिरिक्‍त साथी बन गये । मोहन डांडोलिया ने वरुण को कह दिया था कि कम मुश्किल रास्‍ते से ले जाना । चार साढे चार बजे शुरु हुआ सफर । तय यह था कि हमारे साथ वरुण और मौजीलाल होंगे । किसी शार्टकट से सेवंती और सुशीला जायेंगी । उतरना शुरु भी नहीं हुआ था कि दूर से सुशीला और सेवंती ने कुछ संकेत दिये । मौजीलाल तुरंत उनकी तरफ लौटा । कुछ देर बाद मौजीलाल नहीं सुशीला और सेवंती लौटे । उन्‍होंने बताया कि वजन के साथ उनसे उतरते नहीं बन रहा है । अब सामान लेकर मौजीलाल जायेगा । हम एक ऐसे स्‍थान पर थे जहॉं से एक ओर रातेड का रास्‍ता जाता था । दूसरी ओर कारेआम का । कुछ फीट चलने पर ही हमें कूदना पड़ा । मैंने पूछा क्‍या ऐसे ही ? पानी की बौछारें प्रारंभ हो गयी थी लेकिन उजाला था । कभी किसी चट़टान पर पॉंव रखाता तो कभी सूखे पत्‍तों से भरे किसी गड्डे में । ऐसा सफर कम ही किया था । इतना दुर्गम तो नहीं ही । घंटे भ्‍ार बाद पूछ और कितना तो वरुण बोला अभी तो पॉंच प्रतिशत सफर ही तय हुआ है । अंधेरा शुरु हो चुका था पानी भी अपनी बौछारे बढ़ा रहा था । आगे वरुण रास्‍ता भूल गया । वह सुशीला से कहने लगा कि अब उसे मार्ग प्रशस्‍त करना चाहिए । वरुण ने बताया कि दरअसल वह पातालकोट कारेआम में कम रहता है वह तो कौढिया ढाना में रहता है । फिर इस रास्‍ते वह कम ही आता है । अब मोर्चा सुशीला ने संभाला । सुशीला मौजीलाल की बहन है । उम्र है 22 साल । इस साल 10 वीं की परीक्षा ओपन से देना है । अंधेरा था । घना होता हुआ । बरसात थी। बढ़ती हुई । रोमांच  उत्‍सुकता सब बरकरार थी । कृष्‍णा ने बताया कि सूखे पत्‍तों से भरे गड्डे में पॉंव नहीं रखना चाहिए क्‍योंकि वहॉं कोई जहरीला जीव हो सकता है । सुन रखा था कि पातालकोट में बहुत जहरीले सॉंप रहते हैं । एक फुरफुरी सी आई । कुछ आगे जाकर हमने एक चट़टान पर विश्राम किया । मालवीय नये कैमरे से फोटोग्राफी का अभ्‍यास कर रहा था । कुछ तांती नहीं कर पा रहा था । कृष्‍णा नये डिजिटल रिकार्डर से हर पल को रिकार्ड कर रहा था । सब पसीने से चूर चू र थे । सेवंती को कुछ समझ पडा वह एक बांस तोड लायी मेरे लिए । कहा इसको टिकाकर चलिए । पूछने पर पता चला कि सफर आधा भी नहीं हुआ । रास्‍ते में शेर की बात चल पडी । सुशीला ने बताया कि गॉंव के आसपास बकरियों और गायों को खा रहा है । भवानीप्रसाद मिश्र की कविता सतपुड़ा के घन जंगल याद आने लगी । तरह तरह की कसारी बोल रही थी । बहुत सारे जुगनू आसपास चमक रहे थे । कहीं ढेढर तो कहीं सॉंप के टर्राने की आवाज आ रही थी । हमारी आहट पर हर्रा जामुन साज महुआ जैसे किसी पेड से कोई पंछी फडफडा कर उड जाता । कुछ दूर आगे चले तो टार्च की रोशनी दूर से दिखी । सेवंती ने बताया कि मौजीलाल आ रहा है ।कुछ देर बाद मौजीलाल एक बच्‍चे के साथ दो लटठ लेकर आया । उसने बताया कि गॉंव से एक और आदमी को लेकर चला था पर बिच्‍छू ने उसे कांट लिया इसलिए वह लौट गया । उसने यह भी बताया कि हमें पानी के डबरों में पॉंव नहीं रखना चाहिए । खैर आठ सवा आठ बजे हम गांव की सीमा में दाखिल हुए । कुत्‍तों ने भौंककर हमारा स्‍वागत किया । 22 घरों का पूरा गांव हमारे स्‍वागत में उस रात 12 बजे तक खूब नाचा । सेताम, कर्मा, सैला सब नृत्‍य हुए । इस बीच वरुण के घ्‍ार डटकर भोजन किया । कृष्‍णा और मालवीय भी खूब नाचे ।क्रमश: