शनिवार, 14 मई 2016

पुराने पते पर
आ जाती है अब भी
भूले भटके कोई चिट्ठी
पता मेरा धूसर
गर्द में लिपटा
सिवा बूढ़े डाकिये की स्मृतियों के
नहीं जानता
कि रहता था कभी वहॉं कोंई
हेरता रहता था जो  बाट 

पुराने नाम से सालों बाद
दे जाता है कोई हांक

कपासी केश धरती छूती कमर
टेकते टेकते कुबड़ी
कोई वृद्धा माँ रही होगी
सोचा होगा फेरती चलूँ
माथे पर मेरे
हाथ

कुछ दरख्त
कोई फाख्ता
कोई घाट
भी करता होगा याद
अब मेरा कोई पता नहीं है
दर ब दर
शहर शहर
ताबील स्याही में
वहॉं हूँ जहॉ
ओ आमेना
कहीं नहीं मिलता हॅू।
तुम्हारे सामानों
में मेरा पता भी
चला गया ।

अनादि परिचय की गंध से
हेरा गाय ने
बोला
कहाँ रहे इतने दिन इतनी रात?
मौन पड़ी कड़िपाट ने कहा
पहले तो करते थे मन की हर बात
धूल सनी दीवारों
मंझघर में टंगे निश्चेष्ट झूले ने
वर्षों से ठण्डे पड़े चूल्हे ने
घूरा कई बार ।
फुदक फुदक गौरिया
करती रही शिकायत मेरा दाना पानी मत दो भले ही
पर इतनी बेर तो ठीक नहीं।
हनुमानजी का ओटला
माता माय की थान
कुल देवता का देवरा
ताक में रखा भौरा
पीं पीं करता चका
आम इमली की शाखा
सबने पूछा तुम वही हो न ?
नाल चाभी वाला ताला
लगा कहने
इतनी देर के लिए नहीं है हम
पर साल जाता रहा कबरा भी ।
अपनी ही लाचारी में
बुदबुदाया मैं
कई कई बार पता नहीं
अब कब आना होगा ?
आखिर बूढ़ी पगडण्डी
सयाने खेत ने कहा
परदेस में जरा जुगु से बेटा ।
कभी कभी वार त्यौहार
आते भी रहना।
भूलना मत
हम सब हैं नाती गोती ।
खूब जीना बेटा
करना राज
सदा सुखी रहना ।
जल्दी जल्दी
आते रहना ।।