tag:blogger.com,1999:blog-12085116113056872232024-03-21T16:47:11.823-07:00लोक साहित्यलोक एवं जनजातीय संसार, सामयिक मुद़दो और मित्रों से विचार विमर्श का एक अनौपचारिक प्रयासloksahityahttp://www.blogger.com/profile/04654881315693035726noreply@blogger.comBlogger51125tag:blogger.com,1999:blog-1208511611305687223.post-81292438100663492332020-04-23T10:14:00.001-07:002020-04-24T00:16:15.233-07:00विश्व पुस्तक दिवस : हरदा का लेखकीय अवदान
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loksahityahttp://www.blogger.com/profile/04654881315693035726noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1208511611305687223.post-68725851207422911282020-04-23T10:10:00.000-07:002020-04-24T05:36:01.012-07:00
जब मैं दूसरी कक्षा में चला गया तब मेरा स्कूल जाने का कुछ अभ्यास बढ़ा । स्कूल के प्रति भय भी कम हुआ । दूसरी कक्षा में कुछ दिनों तक कुरेशिया पंडीतजी ने हमें पढ़ाया था। वे लंबे पतले और खूब पान खाने वाले थे। उनका लड़का सतीश भी मेरी कक्षा में था। स्कूल नाके से लगी हुई थी। जब भी कोई बस गुजरती मैं पंडीतजी से पूछ पड़ता - क्या टाईम हुआ है ? मेरे लगातार इस तरह से पूछने पर कुरेशिया पंडितजी एक दिन खीज गये। loksahityahttp://www.blogger.com/profile/04654881315693035726noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1208511611305687223.post-5833837200308229352016-05-14T14:35:00.000-07:002016-05-14T14:39:38.531-07:00
पुराने पते पर
आ जाती है अब भी
भूले भटके कोई चिट्ठी
पता मेरा धूसर
गर्द में लिपटा
सिवा बूढ़े डाकिये की स्मृतियों के
नहीं जानता
कि रहता था कभी वहॉं कोंई
हेरता रहता था जो बाट
पुराने नाम से सालों बाद
दे जाता है कोई हांक
कपासी केश धरती छूती कमर
टेकते टेकते कुबड़ी
कोई वृद्धा माँ रही होगी
सोचा होगा फेरती चलूँ
माथे पर मेरे
हाथ
कुछ दरख्त
कोई फाख्ता
कोई घाटloksahityahttp://www.blogger.com/profile/04654881315693035726noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1208511611305687223.post-27782553842889434802016-05-14T14:26:00.000-07:002016-05-14T14:26:13.195-07:00
अनादि परिचय की गंध से
हेरा गाय ने
बोला
कहाँ रहे इतने दिन इतनी रात?
मौन पड़ी कड़िपाट ने कहा
पहले तो करते थे मन की हर बात
धूल सनी दीवारों
मंझघर में टंगे निश्चेष्ट झूले ने
वर्षों से ठण्डे पड़े चूल्हे ने
घूरा कई बार ।
फुदक फुदक गौरिया
करती रही शिकायत मेरा दाना पानी मत दो भले
ही
पर इतनी बेर तो ठीक नहीं।
हनुमानजी का ओटला
माता माय की थान
कुल देवता का देवरा
ताक में रखा भौरा
पीं पीं करताloksahityahttp://www.blogger.com/profile/04654881315693035726noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1208511611305687223.post-88286893182585507652013-10-17T07:52:00.000-07:002013-10-17T07:52:04.018-07:00
हरदा की यात्रा
लोकजीवन की यात्रा
साल सवा साल से भोपाल में हूँ । दशहरे
का अवकाश मिला तो हरदा जाना हो गया । हरदा गया तो फिर अपने गॉंव दूलिया भी जाना हो
गया । इस बार बारिश दशहरे के एक दिन पहले तक होती रही । मुझे अपने गॉंव जाने के लिए
सिराली होकर जाना पडा । पहले तो मन में कोफ़्त थी पर कमताडा गांव आते आते मन आह्लाद
से भर उठा । कुछ बालकाऍ ' नरवत ' विर्सजन के लिए जा रही थी । बच्चियों का परिधान
तो loksahityahttp://www.blogger.com/profile/04654881315693035726noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1208511611305687223.post-40307985326506542362013-10-10T09:10:00.001-07:002013-10-10T09:10:21.689-07:00लोक साहित्य- धर्मेन्द्र पारे: जनजातीय भाषाओं ज्ञान विज्ञानलोक साहित्य- धर्मेन्द्र पारे: जनजातीय भाषाओं ज्ञान विज्ञान: जनजातीय भाषाओं ज्ञान विज्ञान हमारे देश में प्राय: मातृभाषाओं में शिक्षा प्रशिक्षा की बात होती है। जब हम मातृभाषाओं की बात करते हैं त...loksahityahttp://www.blogger.com/profile/04654881315693035726noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1208511611305687223.post-56665429605513235432013-10-10T09:02:00.001-07:002013-10-10T09:02:39.307-07:00जनजातीय भाषाओं ज्ञान विज्ञान
जनजातीय भाषाओं ज्ञान विज्ञान
हमारे देश में प्राय: मातृभाषाओं में
शिक्षा प्रशिक्षा की बात होती है। जब हम मातृभाषाओं की बात करते हैं तो हिन्दी या
प्रांतीय भाषाओं लोकभाषाओं की सीमा तक
जाकर हमारी वैचारिकता ठहरने लगती है। अक्सर जानजातीय भाषाऍं हमारी चिंता और
विवेचना के केन्द्र में नहीं होती । जबकि भारत के लोकतांत्रिक स्वरुप के लिए यह
होना बहुत आवश्यक है। आज जनजातीय अंचलों में अलगाव सबके loksahityahttp://www.blogger.com/profile/04654881315693035726noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1208511611305687223.post-353592121172086762013-10-08T10:51:00.000-07:002013-10-08T10:53:10.367-07:00श्री सीताचरण दीक्षित
श्री सीताचरण दीक्षित
श्री सीताचरण महावीरप्रसाद
दीक्षित, हरदा
हरदा की उस शिक्षकीय पीढ़ी के प्रतिनिधि पुरुष श्री दीक्षित ने विद्यार्थियों
को आजादी के संघर्ष का वह पाठ पढ़ाया कि आज तक हरदा के शिक्षा जगत में उनका नाम
बहुत आदर से याद किया जाता है। बावजूद
इसके उनके विषय में हरदा और हरदा से जाने के बाद की सेवाओं की जानकारी लगभग नहीं
के बराबर उपलब्ध है । श्री दीक्षित झंडा
loksahityahttp://www.blogger.com/profile/04654881315693035726noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1208511611305687223.post-31748967214362889112013-10-05T11:11:00.000-07:002013-10-05T11:21:41.091-07:00हरदा में राजनैतिक चेतना जगाने वाले श्री महादेव शिवराम गोले
हरदा की यह खासियत रही है कि
अपने दौर की हर राजनैतिक और सामाजिक चेतना से यह जुड़ा रहा है । 1905 में बंग भंग की घटना से देश में एक नई बयार चली थी
। उस समय भी हरदा ने अपनी सक्रियता का परिचय दिया था । हरदा के पास एक गॉंव
पिडग़ॉंव है । वहॉं पर पूनाloksahityahttp://www.blogger.com/profile/04654881315693035726noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1208511611305687223.post-87057031436194341612013-10-02T11:40:00.000-07:002013-10-05T04:48:15.105-07:00मालती परुलकर के बहाने हरदा का साहित्य इतिहास
हरदा का साहित्यिक
इतिहास लिखने की कतिपय चेष्टाऍं हुई है । यूं हरदा अंचल की प्रारंभिक रचनाऍं संतो के पदों
के रुप में मिलती है । संत रंकनाथ, निबलदास, हरिदास, दीनदास, कान्हा बाबा, जैता
बाबा, कालूबाबा ,आत्माराम बाबा आदि संतो की रचनाऍं प्रारंभिक इतिहास में गिनी
जायेगीं । फिर कुछ विदेशी लोग विशेषकर मिशिनरियों ने यहॉं रचनाकर्म किया। इसके बाद
हरदा में हिन्दी के युग प्रवर्तक साहित्यकार पंडित loksahityahttp://www.blogger.com/profile/04654881315693035726noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1208511611305687223.post-14339625231979815182011-11-07T09:06:00.000-08:002011-11-07T09:06:30.188-08:00श्री शरद पटाले - दुख ही जीवन की कथा रही<!--[if gte mso 9]> Normal 0 false false false EN-US X-NONE HI MicrosoftInternetExplorer4 <![endif]--><!--[if gte mso 9]>loksahityahttp://www.blogger.com/profile/04654881315693035726noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1208511611305687223.post-10562621750878796292011-06-19T11:57:00.000-07:002011-06-19T11:57:48.696-07:00कारेआम पातालकोट का सफर
बहुत दिनों के बाद बल्कि कहिए सालों के बाद कॉलेज से चंद दिनों की मोहल्लत मिली थी । सबकुछ भूलकर मैं पातालकोट भाग गया । भारिया जनजाति के लोगों के बीच । खूब मजा आया । धरती से लगभग तीन हजार फीट नीचे होगा पातालकोट का कारेआम गॉंव । वैसे पहाडी के ऊपर लिखा है ढाई किलोमीटर दूर । मेरे साथ राजेन्द्र मालवीय और कृष्णा वशिष्ठ भी थे । कारेआम से हमें लेने मौजीलाल और वरुण आये थे । सुशीला और सेवंती योग से loksahityahttp://www.blogger.com/profile/04654881315693035726noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1208511611305687223.post-55698916751787225922010-12-16T09:28:00.002-08:002010-12-16T09:28:58.343-08:00कोरकू जीवन राग
अपने द्वार पर कोरकू बालिका
खेल में मगन बालक
कोरकू बालिकाऍं ठापटी नृत्य की तैयार
कोरकू जनजाति की वाचिक परंपरा पर कार्य करते हुए मुझे एक दशक ही होने को आया .. यात्रा हर बार नई शुरुआत लगती है। कोरकू संस्कार गीतों से प्रारंभ यह यात्रा कोरकू गाथा ढोला कुंवर, कोरकू देवलोक और गोंड देवलोक होते हुुए अब आ खड़ी हुई है - कोरकू जनजाति के जीवन राग से जुड़े पर्व, त्यौहार और उत्सव गीतों के loksahityahttp://www.blogger.com/profile/04654881315693035726noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1208511611305687223.post-43735460157673469552010-09-30T13:07:00.000-07:002010-09-30T13:07:32.902-07:0030 सितम्बर 2010 का दिन30 सितम्बर 2010 का दिन दहशत जिज्ञास और बोरियत से भरा दिन रहा । सुबह सब्जी लेने गया तो घंटाघर के पास पुरानी सब्जी मंडी में दो तीन दुकाने ही खुली थी मुझे लगा आज शायद सब्जी कम आई होगी । मैं नई सब्जी मंडी पहुंचा वहॉं भी पूरी मंडी में केवल दो तीन दुकाने खुली थी । सड़कों पर लगभग सन्नाटा था । आम दिनों में देर रात तक खुली रहने वाली पान दुकाने भी बंद थी । रास्ते में जो भी मिल रहा था अजीब सी दहशत loksahityahttp://www.blogger.com/profile/04654881315693035726noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1208511611305687223.post-68929005418509697252010-06-26T11:04:00.000-07:002010-06-26T11:04:50.929-07:00चल परदेशी घर आपणाआज बस इतना ही ।loksahityahttp://www.blogger.com/profile/04654881315693035726noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1208511611305687223.post-33362494294156819942010-06-05T10:23:00.000-07:002010-06-05T10:24:53.741-07:00वन्य जनजातियों कोरकू और गोंड के अध्ययन के दौरान भी कतिपय वन ग्रामों में उनसे भेंट होती रही थी । चाहकर भी मैं उन पर गौर नहीं कर पाया । हालॉंकि मेरी एक कृति रायसल का नायक और प्रमुख पात्र रायसाजी और धनाजी स्वयं गवली जाति के हैं । लंबे ,गौर वर्णी, लंबी नाक और छरहरी काया जो लगातार पैदल चलने के कारण होती है के मालिक गवली आज भी बैतूल ,खंडवा ,होशंगाबाद और हरदा के कुछ वन ग्रामों में निवास करते loksahityahttp://www.blogger.com/profile/04654881315693035726noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1208511611305687223.post-6538550640542896592010-05-28T10:06:00.000-07:002010-05-28T10:06:46.050-07:00यह कौन सा पक्षी है भाईआज जब गांव पहुंचा लगभग साढ़े पॉंच बज रहे थे । खले में जहूर और गणेश तार फेंसिंग का काम कर रहे थे । रामनारायण उर्फ काका भी वहीं था । इधर उधर की बात के बाद मैंने काका से कैमरा लाकर देने का कहा । तीन दिन पहले यहीं भूल गया था । शायद मेरी बात कोई सुन रहा था । सू बबूल के ऊपर जैसे ही मेरी निगाह गई मैंने गणेश कोरकू से पूछा यह कौन सा पक्षी है । जहूर और गणेश नाम याद करने लगे । रामनारायण के हाथ से मैंने loksahityahttp://www.blogger.com/profile/04654881315693035726noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1208511611305687223.post-3380413093558259402010-05-24T09:40:00.000-07:002010-05-24T09:41:18.044-07:00मरते हुए पंछी जलते हुए शजरनौतपा कल से प्रारंभ होगा । मुकेश पान वाले की दुकान पर चर्चा थी कि आज का तापमान 46 डिग्री था । पत्रकार दीपक दीवान के अनुसार कल 46 डिग्री तापमान था । असलियत जो भी हो गर्मी असहनीय थी । दोपहर में जैसे ही घर से निकल रहा था , पोर्च में एक नीलकंठ आकर गिरा थोडी देर तड़पा फिर नीचे पड़े पानी से शायद उसे राहत मिली होगी वह संभल कर उड़ गया । रात को जब गांव से लौट रहा था , लल्लू सर के घर ओटले पर संतू भैया loksahityahttp://www.blogger.com/profile/04654881315693035726noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1208511611305687223.post-7912466214551499932010-05-19T09:59:00.000-07:002010-05-19T10:02:04.499-07:00आज शाम को गांव जाने का तय तो नहीं था । फिर भी चला गया । शहर में पारा लगभग 45 या ऊपर ही रहा होगा । हरदा में तापमान बताने वाली कोई अधिकृत एजेसीं तो नहीं है आसपास के शहरों खंडवा, होशंगाबाद भोपाल से ही अनुमान होता है । बहरहाल, गांव गया । पेड़ लगाने के लिए जो गड़डे करवायें हैं वहॉं फेंसिंग करवाने के लिए जहूर से बात की । अनूपसिंह अर्थात अनोप ने उपयोगी सलाह दी । पता नहीं क्यों गांव से शहर लौटने का मन loksahityahttp://www.blogger.com/profile/04654881315693035726noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1208511611305687223.post-45744803355746890902010-05-17T10:26:00.000-07:002010-05-17T10:54:38.434-07:00आज फिर गॉंवकॉलेज से पॉंच बजे निकलना हुआ । बहुत तेज गर्मी थी । कल से भी ज्यादा । रोहिणी नक्षत्र लगने में तो अभी देरी है । पर ऐसी विकराल गर्मी संभवत: मैंने भी पहली बार देखी है । ज्ञानेश चौबे से कल ही बात हो गई थी कि यदि मेरा दूलिया जाना हुआ तो आप भी चले चलना । दरअसल ज्ञानेश चौबे प्रसिद्ध गांधीवादी सर्वोदयी दादाभाई नाईक अर्थात दत्तात्रय भीखाजी नाईक पर पुस्तक लिखना चाह रहे हैं । वे मोहनपुर के थे । मोहनपुर औरloksahityahttp://www.blogger.com/profile/04654881315693035726noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1208511611305687223.post-24201610204247321852010-05-08T06:59:00.000-07:002010-05-08T06:59:10.454-07:00बस कुछ कुछ यूं हीकॉलेज में इन दिनों परीक्षा चल रही है । इन दिनों क्या ज्यादातर दिनों से परीक्षा ही चल रही है । नये साल की शुरुआत सेमेस्टर परीक्षा से और अब स्वाध्यायी वार्षिक पद्धति वाले विद्यार्थियों की । सुबह छह साढ़े छह के बीच कॉलेज जाता हॅू । साढे दस ग्यारह तक घर लौटता हॅू । फिर साढे बारह एक बजे से कक्षाऍं लेकर तीन बजे से परीक्षा में जुट जाता हॅू दूसरी पारी की । घर तक आते आते सात बज जाते हैं । थककर निढालloksahityahttp://www.blogger.com/profile/04654881315693035726noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1208511611305687223.post-13579659012752585552010-05-06T10:24:00.000-07:002010-05-08T06:42:21.161-07:00गांव के घर की यादबाहेती कॉलोनी के घर में आये हुए अब चार साल पूरे हो जायेगें। जन्म मेरा जरुर हरदा में खेडीपुरा वाले मकान में हुआ हो बचपन के तीन चार वर्ष अपने गांव दूलिया में ही बीते । और जब तक एम ए किया प्रत्येक वर्ष गर्मी के दो माह और दीपावली के आसपस का एक माह दूलिया में ही बीता । 1988 से मेरा जाना लगातार कम होता गया । कम से कमतर मॉं के नहीं रहने के बाद 2005 से तो अक्सर ऐसा ही हुआ कि कभी गांव गया भी तो loksahityahttp://www.blogger.com/profile/04654881315693035726noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1208511611305687223.post-12217263521344420332010-01-02T09:14:00.000-08:002010-01-02T09:14:44.025-08:00हर बार नये साल की तरहहर बार नये साल की तरह
लंबा समय हुआ कविता नहीं लिखी । दो कविताऍं डायरी में बची थी ।
(एक)लौैटकर आना चाहता हूं बार बार इसी धरती परइन्हीं इन्हीं लोगों के बीचइन्हीं गांवों इन्हीं मैदानोंइन्हीं दुख सुख मित्रता शत्रुतारिष्तों नातों के बीचअबके जाऊॅंगा तो जाऊंगाजाता रहा हॅंू सदियों से यूं हीआना चाहता हॅंू मैं तो यहीं यहींघूमा हॅंूूं दिग दिगन्तरअंत अनन्तरपर मेरे भीतर भीतरभीतर बस यही यही भीतर ।यहीं loksahityahttp://www.blogger.com/profile/04654881315693035726noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1208511611305687223.post-50983745432998472202009-12-18T12:49:00.000-08:002009-12-18T12:50:19.001-08:00चिलौरीचिलौरी
इरकोना इरको इकरो येन डो जामुनी पाला
इरको येन डो जामुनी पाला इरको येन
आचारा रेसे डे डो जोंदोरा बीडे माडो जोंदोरो बीडे
पुलुमा लीजा कपड़े लीजे जोरियान कूडो डूगूवा
डो जोरियान कूडो डूगूवा
गांव- मुरलीखेड़ा स्रोत व्यक्ति- लक्ष्मण
कुवारी लड़की जामुन की पत्ती जैसी सुन्दर हो । अब तुम बड़ी हो रही हो ।अब तुम लुगड़े (साड़ी) का पल्ला खोंसकर ज्वार बोने लग जाओ । वह भी सफेद रंग की साड़ी पहन कर जिसमें 'loksahityahttp://www.blogger.com/profile/04654881315693035726noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1208511611305687223.post-34846930617883827522009-12-17T10:48:00.000-08:002009-12-17T10:48:08.724-08:00अपने बचपन की स्मतियॉं मुझे न जाने किस किस संसार में ले जाती रही हैं । उनपर लिखने का क्रम अभी कुछ दिनों तक रुका रहेगा । इन दिनों मैं पुन: कोरकू जनजाति के पर्व उत्सव त्यौहार अर्थात उनके जीवन के पूरे राग पर केन्द्रित गीतों को लिप्यांतरित कर समझने की कोशिश कर रहा हूं । अद़भुत गीत हैं ये बिल्कुल ताजे पत्तों और फूलों की तरह । बिल्कुल निष्कलुष बेदाग । विस्मित करते गीतों के संसार से गुजर रहा loksahityahttp://www.blogger.com/profile/04654881315693035726noreply@blogger.com