विश्व पुस्तक दिवस : हरदा का लेखकीय अवदान
आज 23 अप्रैल है विश्व पुस्तक दिवस। 23 अप्रैल 1564 को शेक्सपीयर का निधन हुआ था। साहित्य जगत में शेक्सपीयर को जो स्थान प्राप्त
है उसी को देखते हुए यूनेस्को ने 1995 और भारत सरकार ने 2001 में 23 अप्रैल के दिन को विश्व पुस्तक दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की है। हम
विश्व की बात छोड़ दें हम अपने आसपास के कितने लेखकों उनकी पुस्तकों,प्रकाशकों को जानते हैं? हमारे शहर में लेखन की दुनिया के कौन कौन से
नाम हैं? संभवत: नई पीढ़ी उनसे वाकिफ भी नहीं होगी। श्री सीताचरण दीक्षित,श्री महादेव गोले, श्रीमती मालती परुलकर जैसों को तो दिवंगत हुए
ही बहुत समय हो गया! सुविख्यात लेखक श्री महावीर प्रसाद द्विवेदी हरदा में रहे। एक
भारतीय आत्मा माखनलाल चतुर्वेदी और सुप्रसिद्ध व्यंग्यकार श्री हरिशंकर परसाई का
बचपन हरदा जिले में ही व्यतीत हुआ। श्री शरद बिल्लौरे असमय ही चले गये। अभी मौजूद
श्री नरेन्द्र मौर्य की कौन कौन सी पुस्तकों और संपादित पत्रिका को हम याद करते
हैं। श्री अजातशत्रु की पहली पुस्तक कौन सी थी ? कभी अमेरिका में प्रोफेसर
रहे श्री लाल्टू ने हरदा में रहने के दौरान कई कहानियां और कविताएं लिखी। कौन कौन
जानते हैं कि श्री कंचन चौबे ने विश्वविख्यात कथाकारों का हिंदी में अनुवाद भी
किया। श्री मदन मोहन जोशी मूलत: गोलापुरा हरदा के ही थे। हरदा के प्रकाशन
संस्थानों के संदर्भ विदेशी पुस्तकालयों में तो मिल जाते हैं किन्तु हरदा में हम
नहीं जानते। न्याय सुधा प्रेस हरदा में था । जिनके नाम से गुलजार भवन प्रसिद्ध है वे
श्री गुलजार सिंह ठाकुर की स्मृति में भी एक कथा संग्रह निकला था। जिसके प्रकाशक
नाना मुकुंद नवले थे।
श्री माणिक वर्मा,श्री प्रेमशंकर रघुवंशी,श्री नर्मदाप्रसाद उपाध्याय,श्री कैलाश मंडलेकर,डॉ प्रभुशंकर शुक्ला,डॉ विनीता रघुवंशी, प्रोफेसर धर्मेन्द्र पारे ने हरदा को अपनी
रचनाधर्मिता से गौरव दिया है। श्री मूलाराम जोशी,श्री हरि जोशी, श्री राधेलाल बिजघावने, सेवानिवृत्त जिला न्यायधीश श्री देवेन्द्र
जैन का एक काव्य संग्रह उनके हरदा में रहने के दौरान ही प्रकाशित हुआ । उन्हीं के
सुपुत्र और पुलिस अधिकारी श्री मलय जैन का व्यंग्य संग्रह भी हरदा में रहने के
दौरान ही प्रकाशित हुआ । श्री उत्तम बंसल, श्री इल्तैमाश हुसैन, सुश्री उर्मि कष्ण,श्री चंदन यादव, श्री मदनगोपाल व्यास,श्री दुर्गेश नंदन शर्मा,डॉ नीहारिका रश्मि, डॉ.लता अग्रवाल, श्री ज्ञानेश चौबे, श्री रमेश भद्रावले, सुश्री अर्चना भैंसारे, प्रियंका पंडित, डॉ प्रियंका राय, सोनू उपाध्याय, की पुस्तकें कितने लोगों ने पढ़ी है? हरदा में बहुत कम लोगों को मालूम होगा कि संस्कृत में भी लिखा गया । श्री किरण
पंडित के पुरखे पंडित जगन्नाथ भट्ट गोकुल भट्ट संस्कृत में लिखते थे । उसी परंपरा
में आज हमारा डॉ देवेन्द्र पाठक है । हरदा में न्याय सुधा प्रेस था जिसमें कानून की
पुस्तकें प्रकाशित हुई । आज से लगभग सवा सौ
वर्ष पूर्व इसी प्रेस से न्याय सुधा समाचार पत्र प्रकाशित हुआ जब तत्कालीन सेंट्रल
प्राविन्स और बरार में बमुश्किल नौ दस
पेपर निकलते थे । बेणी माधव प्रकाशन हरदा में है । हरदा से हस्तलिखित और
साइक्लोस्टाइल पत्र भी प्रकाशित हुए कितने याद हैं? हंटर नाम का एक पेपर
आजादी के आंदोलन में बहुत मशहूर हुआ । बाद में एकलव्य से युवाओं के लिए संभावना और
छोटे बच्चों के लिए चिलबिला साइक्लोस्टाइल पेपर निकला जिसे युवा और बच्चे स्वयं
निकालते थे । स्वर्गीय अशोक वाजपेयी, श्री प्राणेश अग्रवाल
छोटी छोटी कविताओं और क्षणिकाओं के लिए प्रसिद्ध थे । आज उस कड़ी में श्री मुकेश
पांडेय में वह चुटिला और पैनापन नजर आता है। नवोदित कथाकारों में श्री अतुल शुक्ला
संभावना से भरे हैं। हॉं याद आया कई विदेशी खासकर अंग्रेजी के लेखकों ने
हरदा में रहकर कुछ लिखा है । मराठी और उर्दू की परंपरा यहॉं बहुत समृद्ध रही है । इनायतुल्ला बेनाम
साहब असीर साहब और नादान साहब तो बहुत चर्चित हैं ही । हरदा अंचल में संत साहित्य की परंपरा
लगभग 200 वर्षों से चली आ रही है । दीनदास बाबा, कृष्णानंद महाराज, रंकनाथ बाबा, आत्माराम बाबा, कान्हा बाबा, जैता बाबा,
कालू बाबा सबके पद आज भी मिल जाते हैं । श्री गेंदर जी ने जाम्भाणी साहित्य में
अपना योगदान दिया । हमारे प्रोफेसर शुक्ला जी तानाजी के विषय में कई बात बताते थे ।
बहुत से नाम तात्कालिकता के चक्कर में छूट गये हैं । मैं अपने खजाने को ही यदि
तलाशूं तो और भी नाम और पुस्तकें मेरे व्यक्तिगत संग्रह में रखी होंगी। आइये जरा
एक सूची तो बनायें हरदा के लेखकों उनकी कृतियों और उनके अवदान की ।
हरदा के दो और लेखकों की
पुस्तकों का आवरण शेयर कर रहा हॅू। एक हैं प्रोफेसर महादेव शिवराम गोले । जो भारत
के दूसरे कॉलेज डेक्कन कॉलेज में सेकेंड प्रिंसिपल और प्रोफेसर रहे । शायद ही कोई
जानता हो वे हरदा के पास पिड़गांव के रहने वाले थे । हरदा के गॉंधी प्रोफेसर
महेशदत्त मिश्र का कहना था कि हरदा में राननैतिक चेतना जगाने का श्रेय प्रोफेसर
गोले को है । उन्होने कई पुस्तकें लिखी, एक पुस्तक का आवरण दे रहा
हूं । यह मराठी में है। दूसरी लेखिका हैं, श्रीमती मालती ताई परुलकर, उस जमाने में राजकमल जैसे प्रतिष्ठित प्रकाशन से उनकी पुस्तकें प्रकाशित हुई ।
वो गजल हैं ना ....बात निकली तो दूर तलक जायेगी..सही और तथ्यपरक जानकारी नई पीढ़ी
तक जाना ही चाहिए । हिंदी अपनी लोकभाषाओं के खाद पानी से ही पुष्पित पल्लवित हुई है। ऐसे में लोकभाषाओं का अध्ययन बहुत जरुरी है। श्री गौरीशंकर मुकाती ने इस दिशा में पहल की है उन्होंने भुआणी बड़ी सुहानी शीर्षक से एक पुस्तक लिखी है । जिसमें हमारे अंचल में प्रचलित भुआणी निमाड़ी शब्दों का संकलन किया है। वे अभी भी इस दिशा में सक्रिय हैं।श्री मनमोहन चौरे संतोष,श्री गोकुल प्रसाद गौर ने भी हरदा में रहकर अपना साहित्यिक कर्म किया। हरदा में मंच की भी एक समृद्ध परंपरा रही है। श्री अभय गौड़ काव्य प्रदीप, श्री अशोक दुबे, श्री कमल किशोर मालवीय, श्री मयंक यवलेकर, श्री त्रिलोकीनंदन शर्मा, श्री लोमेश गौर, श्री मुकेश शांडिल्य चिराग ने चमक दमक से दूर अपनी एकांत साधना की है। श्री बलराम काले और गच्चू चांडक गजल में उभरता हुआ नाम है । नवागत पीढ़ी को बहुत प्यार और शुभकामनाओं के साथ — धर्मेन्द्र पारे, भोपाल, विश्व पुस्तक दिवस, 2020 यह शुरुआत है....