हरदा का साहित्यिक
इतिहास लिखने की कतिपय चेष्टाऍं हुई है । यूं हरदा अंचल की प्रारंभिक रचनाऍं संतो के पदों
के रुप में मिलती है । संत रंकनाथ, निबलदास, हरिदास, दीनदास, कान्हा बाबा, जैता
बाबा, कालूबाबा ,आत्माराम बाबा आदि संतो की रचनाऍं प्रारंभिक इतिहास में गिनी
जायेगीं । फिर कुछ विदेशी लोग विशेषकर मिशिनरियों ने यहॉं रचनाकर्म किया। इसके बाद
हरदा में हिन्दी के युग प्रवर्तक साहित्यकार पंडित महावीरप्रसाद द्विवेदी रहे ।
पंडित माखनलाल चतुर्वेदी भी प्रारंभ में यहीं रहे। छिदगांव भादूगांव और मसनगॉव
उनके बचपन के गांव हैं। श्री हरिशंकर परसाई की यादों में टिमरनी, रहटगांव और टिमरनी
का राधास्वामी स्कूल अंत तक बसा रहा। श्री अजातशत्रु तो हरदा और मुम्बई में
समान रुप से सृजन सक्रिय हैं ही। हरदा में कवि और कथाकार लाल्टू भी वर्ष भर से ज्यादा
रहे । रंगकर्म से भी उनका गहरा नाता रहा । हरदा के पास सिवनी मालवा है । इसी तहसील के मूलत: जमानी बैगनिया गांव के निवासी प्रसिद्ध कवि श्री प्रेमशंकर रघुवंशी पिछले पच्चीस सालों से हरदा में सृजनरत हैं। उनके कई संग्रह बहुचर्चित और प्रशंसित पुरस्क़ृत हुए हैं। आज भी वे जितने सक्रिय हैं वह युवाओं के लिए प्रेरणास्पद है । सुप्रसिद्ध ललित निबंधकार नर्मदाप्रसाद
उपाध्याय तो हरदा के हैं ही। ललित निबंध और नवगीतकार, आलोचक श्री श्रीराम परिहार
हरदा में वर्ष भर रहे हैं । माखनलालजी के पश्श्चात हरदा से सन 1930 के लगभग विदा होने वाले श्री सीताचरण दीक्षित दिल्ली जाकर जो कार्य किया वह युगों तक याद किया जायेगा । उनकी कई कृतियॉं प्रतिष्ठित प्रकाशनों से प्रकाशित हुई हैं ।बेहद संभावना से भरे श्री शरद बिल्लौरे असमय ही दुनिया से चले गये । उनकी कृतियॉं उनके संसार से जाने के बाद प्रकाशित हुई ।' तय तो यही हुआ था' उनका बहुचर्चित काव्य संग्रह है । समीक्षा और कथा में बहुचर्चित श्री कैलाश मंडलेकर
मूलत: हरदा के पास नीमसराय गांव के निवासी हैं । 'साथ- साथ' जैसी फिल्म जिस कथाकार की
रचना पर बनी है वे नरेन्द्र मौर्य हरदा के ही हैं । श्री माणिक वर्मा जन्मे अवश्य
खंडवा में पर उनका कृतिकाल हरदा का ही है । ख्यात पत्रकार मदनमोहन जोशी हरदा के
ही हैं । श्री राजेन्द्र जोशी हरदा के पास छिदगांव के रहने वाले हैं और वर्तमान में भोपाल में रचनारत हैं । श्रीमती विनीता रघुवंशी कथा और समीक्षा के क्षेत्र में सक्रिय रही हैं। कथाकार नीहारिका रश्मि और युवतम कवियत्रि प्रियंका पंडित तथा अर्चना
भैसारे हरदा की हैं ।इन दिनों बेहद चर्चा में रहने वाली अर्चना भैसारे को तो इस वर्ष साहित्य अकादमी का युवाओं को दिया जाने वाला सम्मान भी प्राप्त हुआ है। और इस कडी में सबसे नया नाम सोनू उपाध्याय का है। सोनू संपादित पुस्तक शीघ्र ही आ रही है । छपने के पूर्व ही यह चर्चा में आ चुकी है । श्री मदन व्यास ने भी अपना एक गजल संग्रह प्रकाशित करवाया है । कभी हरदा में रहकर श्री मनमोहन चौरे उर्फ संतोष ने भी लेखन कार्य किया था । दुर्गेशनंदन शर्मा एक समय में अखबारों में गीतों के कारण चर्चा में रहे । गजल के क्षेत्र में विकट परिश्रम करने वाले सुनील राठौर अब इस दुनिया में नहीं रहे । विगत 22 जुलाई 2012 को भोपाल में उनका निधन हो गया । सुनील ने संभवत: 46 वर्ष की आयु ही पाई । छपने को लेकर उसमें एक विरक्ति थी । केवल एक बार उसकी दो गजले श्री रामविलास शर्मा ने दैनिक भास्कर के रविवारीय अंक में इंदौर से प्रकाशित की थी । सुनील की गजले उसकी डायरियों में ही खो रही हैं । उसकी पत्नी वापस गुजरात चली गई और भाई अपनी जीवन संघर्ष में रत हैं । श्री ज्ञानेश चौबे अपनी संपादित कृति ' हमारी यादे : हमारा हरदा ' से जितनी प्रतिष्ठा और यश अर्जित कर सके वह अनुपम है । इस पुस्तक को हाथों हाथ लिया गया और यह पुस्तक आज की तारीख में आउट ऑफ स्टॉक है । इस अंचल
में मराठी, और उर्दू में भी रचनाऍं खूब हुई है । जल्दबाजी में लिखे इस ब्लॉग में निश्िचित ही कुछ नाम छूट रहे हैं । हरदा से नरेन्द्र मौर्य ने आदमी नाम की पत्रिका प्रकाशित की थी । अजातशत्रुजी के सहयोग से कभी जीवितराम सेतपाल ने अपनी पत्रिका 'प्रोत्साहन ' का हरदा अंक निकाला था । हरदा से 1881 के लगभग मराठी और अंग्रेजी का समाचार पत्र न्याय सुधा का प्रकाशन सदाशिव पटवर्धन ने किया था ।
जो
लोग इस दिशा में सक्रिय हैं उनके लिए उपर्युक्त सूचनात्मक जानकारियों की कडी में
एक महत्वपूर्ण नाम है श्रीमती मालती
परुलकर का । वे हरदा के प्रसिद्ध परुलकर परिवार की बेटी हैं । आजादी के पूर्व उनका
जन्म हुआ। उनके कई कथा संग्रह प्रकाशित हुए हैं। उनका पहला कथा
संग्रह सन 1958 में राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित हुआ था । कीमत थी ढाई रुपये । मालती परुलकर की
और भी कई कृतियॉं प्रकाशित हुई । 'जहॉं पौ फटने वाली है ' इन्नी तथा मुक्ता उनकी चर्चित पुस्तक
है । उनकी पुस्तकों को मैंने बहुत तलाशा यहॉं तक कि उनके पुत्र बेटे और प्रकाशक से भी बात की किन्तु पुस्तकें पढने को नहीं
मिल सकी। शायद इनमें से बहुत कम
ही पुस्तकें अब उपलब्ध हैं । हरदा में एक समय में एकलव्य पुस्तकालय में मालती
परुलकर के कुछ कथासंग्रह थे। दुर्भाग्यवश अब यह पुस्तकालय कर्ताधर्ताओं की
प्राथमिकता में न होने से ठीक स्थिति में
नहीं है। हरदा के ही नहीं भारत भर के पुस्तकालयों की हालत दयनीय होती जा रही है ! बहरहाल पुस्तक प्रेमियों और हरदा के साहित्यिक इतिहास में रुचि रखने वालों के लिए मालती परुलकर के कथा संग्रह का आवरण संलग्न है ।