हरदा की यह खासियत रही है कि
अपने दौर की हर राजनैतिक और सामाजिक चेतना से यह जुड़ा रहा है । 1905 में बंग भंग की घटना से देश में एक नई बयार चली थी
। उस समय भी हरदा ने अपनी सक्रियता का परिचय दिया था । हरदा के पास एक गॉंव
पिडग़ॉंव है । वहॉं पर पूना से एक व्यक्ति आकर बस गया था नाम था प्रोफेसर महादेव
शिवराम गोले । महादेव शिवराम गोले लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक के साथी थे । पूना
जैसी राजनैतिक चेतना सम्पन्न जगह से हरदा आये थे । स्वाभाविक था कि वे हरदा में
उसका प्रसार करते । हरदा में उनके साथी थे पं. आत्माराम शास्त्री लोकरे, श्री बालाजी अग्रिहोत्री एवं चंद्रगोपाल मिश्र आदि ।
मैंने अपने बहुत आग्रह पर स्व. महेशदत्त मिश्र से नगरपालिका हरदा की स्मारिका 'साक्षी' में एक लेख लिखवाया था 'मेरी यादों में हरदा' उस लेख से ही मुझे तीन चार लोगों के विषय में बहुत जिज्ञासा उत्पन्न हुई
थी । इनके विषय में मात्र संकेतात्मक सूचना भर मिली थी । श्री आत्माराम शास्त्री
लोकरे, प्रो. गोले, श्री मामराज (वस्तुत: यह नाम मामराज जाट है )एवं
हरदा से प्रकाशित मराठी हिन्दी समाचार पत्र 'न्यायसुधा' संपादक श्री सदाशिव रामचंद्र पटवर्धन,तथा श्री सीताचरण दीक्षित । इन व्यक्तियों पर
जानकारी हासिल करने के लिए मैंने अनथक परिश्रम किया । सबकी तो नहीं पर कुछेक की
संतोषजनक जानकारी मिल सकी ।
श्री महादेव शिवराम गोले का जन्म
सन 1859 के मध्य महाराष्ट के सतारा जिला में मर्दे गॉंव के ईनामदार परिवार
में हुआ था । आपके पिताजी को आजीविका के सिलसिले में गॉंव गॉंव जाना पड़ता था इसलिए इनकी शिक्षा अपनी मॉं के पास पुणे में ही
हुई । आपकी प्राथमिक शिक्षा घर पर ही हुई । छह वर्ष की आयु में आपको पाठशाला में
प्रवेश दिलाया गया । श्री गोले ने 1877 में मैट्रिक की परीक्षा
पास करने के बाद डेक्कन कॉलेज में प्रवेश लिया और वहॉं से संस्कृत तथा तत्वज्ञान
विषय लेकर पदपी प्राप्त की । वहॉं उन्हें दक्षिण फैलोशिप भी मिली थी । डेक्कन
कॉलेज में वे श्री आगरकर के संपर्क में आये । श्री आगरकर की सूचना पर उन्होंने 1883 में 'न्यू
इंग्लिश स्कूल' में प्रवेश लिया । जब उन्हें पता चला कि 'संभाव्य कॉलेज' में शास्त्र विषय के अध्यापक की जरुरत है ,उन्होंने
नैसर्गिक शास्त्र विषय लेकर 1884 में एम.ए. की उपाधि प्राप्त की । डेक्कन एजूकेशन
सोसायटी की स्थापना होने पर उसके सात
आजीवन सदस्यों में से श्री गोले भी एक थे । वे फर्ग्यूसन कॉलेज पुणे में भौतिकशास्त्र पढ़ाते थे । 1895 में श्री आगरकर का निधन होने के पश्चात श्री महादेव
शिवराम गोले को फर्ग्यूसन कॉलेज का प्राचार्य बनाया गया । 1901 तक प्राचार्य रहने के बाद उन्होंने आराम करने के
लिए कुछ समय के लिए पद से त्यागपत्र भी दिया था । 18 साल की सेवा पूर्ण करने के बाद उन्होंने अवकाश ग्रहण कर लिया और हरदा के पास
पिडग़ॉंव में खेती करने के लिए स्थायी रुप से बस गये । सन 1906 में वे हवा बदलने के लिए नाशिक गये और वहीं 8 दिसम्बर 1906 को दमे के कारण उनका निधन हो गया । श्री महादेव शिवराम गोले स्वतंत्र विचारों
के व्यक्ति थे । वे अपने विचार अपने ही तरीके से व्यक्त करते थे। ' हिंदु धर्म आणि सुधारण ' नामक पुस्तक में
उन्होंने अपने सामाजिक सुधार सम्बन्धी विचार व्यक्त किये हैं । परंपरावादी सनातनधर्मी लोगों के मत विरोधी उस समय के सुधारकों ने
इन्हीं विचारों के कारण आपकी प्रशंसा की 'ब्राह्मïण आणि त्यांची
विद्या' नामक पुस्तक में आपने शिक्षण के उद्देश्य और शिक्षा पद्घति
पर अपने विचार व्यक्त किये । 'न्यू इंग्लिश स्कूल ' में विद्यार्थियों के लिए होस्टल
होना चाहिए ,यह उन्हीं की मूल कल्पना
थी , और यह कल्पना साकार हुई । 1887 में ,1890 तथा 1894 के वर्षो में वे न्यू
इंग्लिश स्कूल में सुपरिन्डेन्ट के पद पर भी रहे । श्री गोले फर्ग्यूसन कॉलेज के
शास्त्र विभाग के मूल शिल्पकार के रुप में जाने जाते हैं। श्री गोले बीच बीच में
लोकमान्य तिलक के प्रसिद्घ अखबार 'केसरी' में भी लिखते थे
अपने विनोदपूर्ण लेखन के लिए वे लोकप्रिय थे। डेक्कन सोसायटी में आजीवन सदस्य
बनते समय बीस वर्ष की सेवा का वचन देने होता था । बीस वर्ष सेवा करने वाले वे पहले
आजीवन सदस्य थे ।