गुरुवार, 17 अक्तूबर 2013

हरदा की यात्रा लोकजीवन की यात्रा
साल सवा साल से भोपाल में हूँ । दशहरे का अवकाश मिला तो हरदा जाना हो गया । हरदा गया तो फिर अपने गॉंव दूलिया भी जाना हो गया । इस बार बारिश दशहरे के एक दिन पहले तक होती रही । मुझे अपने गॉंव जाने के लिए सिराली होकर जाना पडा । पहले तो मन में कोफ़्त थी पर कमताडा गांव आते आते मन आह्लाद से भर उठा । कुछ बालकाऍ ' नरवत ' विर्सजन के लिए जा रही थी । बच्चियों का परिधान तो पूरा बदल चुका था किंतु परंपरा बहुत हद तक शेष दिख रही थी । बहुत आग्रह करने पर उन्‍होंने पचास रुपये की मांग करते हुए दो गीत सुनाये । अब नरवत के गीतों में भी परिवर्तन हो रहा है । नरवत अर्थात नर के लिए व्रत नर अर्थात शिव । आप दोनों गीत संलग्‍न वीडियो में देख सुन सकते हैं ।

 गांव पहुंचा तो जहूर ने बताया सलिता डोकरी याद कर रही है । सलिता बाई से बीस साल पहले मैंने बहुत हलूर सुनी थी । बाडी बखरने की व्‍यस्‍तता के चलते सलिता बाई से मिलना रह ही गया । हॉं गाय की पायगा के पीछे सॉंप की केचुली देखने को मिली । शहर में अब ये नजारे कहॉं ? जब हरदा लौटा तो रास्‍ते में जगह जगह देव को निशान चढाने वाले मिले । एक जगह तो बहुत ही मधुर स्‍वर में गीत गाते हुए कुछ लोग मिल गये । लगे हाथ उनकी भी एक वीडियो क्लिप बना ली । इस बार की यात्रा में इतना ही मिला । मेरा मन ऐसा ही कुछ तलाशता रहता है । शहर में यही खाली पन बन जाता है ।