मंगलवार, 8 अक्तूबर 2013

श्री सीताचरण दीक्षित

श्री सीताचरण दीक्षित 
श्री सीताचरण महावीरप्रसाद दीक्षित, हरदा
हरदा की उस शिक्षकीय पीढ़ी के प्रतिनिधि पुरुष श्री दीक्षित ने विद्यार्थियों को आजादी के संघर्ष का वह पाठ पढ़ाया कि आज तक हरदा के शिक्षा जगत में उनका नाम बहुत आदर से याद किया जाता है।  बावजूद इसके उनके विषय में हरदा और हरदा से जाने के बाद की सेवाओं की जानकारी लगभग नहीं के बराबर उपलब्ध है ।  श्री दीक्षित झंडा सत्याग्रह में जाने वाले बहुत कम उम्र के व्यक्ति थे । आपका जन्म 23 अगस्त 1906 को गणेश चतुर्थी के दिन  हुआ। आपकी मॉं का नाम अन्नपूर्णा देवी और पिता का नाम महावीर प्रसाद दीक्षित था । श्री सीताचरण दीक्षित मूलत: कानपुर के पास नरवल नामक गॉंव रहने वाले थे । श्री सीताचरण दीक्षित ज्यादातर अपने  बड़े भाई श्री बलवीर प्रसाद दीक्षित के साथ ही रहे । श्री बलवीर प्रसाद दीक्षित  एक्साइज विभाग में काम करते थे  हरदा में श्री सीताचरण दीक्षित के मामा सुंदरलाल दुबे जो कि अपने समय में दद्दा  के नाम से जाने जाते थे, यहॉं मिडिल स्कूल में हेडमास्टर थे । पं. बेनीमाधव अवस्थी आपके मौसाजी थे । इसी रिश्तेदारी के चलते आपके परिजनों का हरदा आना हुआ ।
            श्री दीक्षित को जीवन में बहुत दुखों का सामना करना पड़ा। उनका पहला विवाह श्रीमती विजया के साथ हुआ जिनके मायके का नाम रामवती था । श्रीमती विजया का सन 1939 में निधन हो गया । उनसे उनकी दो संतान हुई थी । श्री सतीष चंद्र दीक्षित एवं श्रीमती कुसुमलता त्रिपाठी । श्रीमती कुसुमलता त्रिपाठी का निधन अभी दो माह पूर्व ही भोपाल में हो गया । श्री दीक्षित का दूसरा विवाह श्रीमती दयावती के साथ हुआ जिनसे एक बेटी श्रीमती कुमुद ग्रोवर हैं । श्रीमती दयावती के निधन के पश्चात दीक्षित जी ने अपने जीवन साथी के रुप में श्रीमती रत्नमयी देवी को चुना । श्री दीक्षित जब वर्धा में गांधीजी के आश्रम में विद्या मंदिर ट्रेनिंग स्कीम में पढाते थे तब श्रीमती रत्नमयी देवी से उनका संपर्क हुआ था । श्रीमती रत्नमयी देवी की तीन संताने थी । बेटे श्री  जे एन.दीक्षित ने बाद में भारत के विदेश सचिव बन कर नाम रोशन किया । दूसरे बेटे का नाम नरेन्द्रनाथ था । बेटी शारदा मणी देवी वयोवृद्घ हैं और अभी दिल्ली में निवास कर रही हैं । श्री दीक्षित की जीवनसाथी श्रीमती रत्नमयी देवी स्वयं भी मलयालम की बहुत अच्छी रचनाकार रही हैं ।
      स्वयं श्री सीताचरण दीक्षित  जीवन पर्यत लेखन पत्रकारिता और रचनात्मक कार्यो से जुड़े रहे । हरदा से जाने के पश्चात उन्होंने कानपुर में प्रसिद्घ समाचार पत्र 'प्रताप में श्री गणेश शंकर विद्यार्थी और श्री बालकृष्ण शर्मा नवीन के साथ कार्य किया । श्री दीक्षित ने नागपुर टाइम्स में कई वर्ष कार्य किया । उन्होंने कलकत्ता से निकलने वाले 'एडवांस तथा अहमदाबाद से प्रकाशित 'हरिजन सेवक में भी कार्य किया । सन 1934-35 में पं. रविशंकर शुक्ल के संरक्षण में नागपुर से 'महाकौशल नामक समाचार पत्र प्रकाशित हुआ था,उसमें श्री दीक्षित ने संचालन संपादन का कार्य किया था । आप गोवा से निकलने वाले मराठी पत्र 'राष्टदूत के संवाददाता भी रहे । श्री दीक्षित सात भाषाओं के ज्ञाता थे । आपने अपने लेखकीय जीवन का सबसे विराट और ऐतिहासिक अवदान 'संपूर्ण गांधी वांग्मय को प्रकाशित संपादित कर दिया । श्री दीक्षितजी 1954 में भारतीय सांस्कृतिक परिषद की ओर से एक वर्ष के लिए ट्रिनीडाड भी गये थे । आप दिल्ली से प्रकाशित दैनिक हिन्दुस्तान में अनेकर वर्षो तक पत्रकारिता के विविध अंगों में कार्य करते रहे । इनमें समाचार संकलन , हिन्दी अनुवाद, पृष्ठï निर्माण्ण ,फीचर लेखन सब कुछ शामिल था । हिन्दुस्तान का लोकप्रिय स्तंभ 'यत्र तत्र सर्वत्र  के आप जन्मदाता रहे रहे हैं । आप कई वर्षो तक कादम्बिनी पत्रिका में शब्द सामर्थ्‍य  बढ़ाइये स्तंभ विशालाक्ष के नाम से लिखते रहे । पत्रकारिता के अलावा आपने चक्रवर्ती राजगोपालाचारी की पुस्तकों यथा- वेदांत- भारत की मूल संस्कृति, भगवतगीता, उपनिषद - जनसाधारण के लिए, का हिन्दी अनुवाद भी किया । 'समाज के स्तंभ (इब्सन के -पिलर्स ऑफ सोसायटी का अनुवाद) भी आपने 1955 में आत्माराम एंड संस , नई दिल्ली से प्रकाशित करवाया था । श्री दीक्षित स्वयं द्वारा भी कई पुस्तकों का सृजन किया गया जिसमें - आनंद का राजपथ(नाटक,1957,आत्माराम एंड संस)नई दिल्ली से प्रकाशित हुआ । ह्दय मंथन   नामक कृति भी इसी प्रकाशन से 1951 में प्रकाशित हुई थी ।'    भारत एक है   राजपाल एंड संस प्रकाशन से 1967 में प्रकाशित हुई थी । 

                        आप सन् 1919 से हरदा क्षेत्र में कांग्रेस  एवं राष्ट्रीय गतिविधियां प्रारंभ करने वाले व्यक्तियों में एक  प्रमुख स्तंभ थे। 8 मई 1923 में आपने झंडा सत्याग्रह में भाग लिया और गिरफ्तार होकर 4 माह की सजा नागपुर जेल में काटी। पर महीने भर बाद ही सरकार का आदेश न मानने के आरोप में प्रिजनर्स एक्ट की धारा 52 के अंतर्गत नौ माह का अतिरिक्त कारावासा भोगा और बाद में 24 जून को रिहा हुए । सन् 1926 में मैट्रिक पास करके हरदा में मिडिल स्कूल शिक्षक हुए। सन् 1929 में राष्ट्रोन्नायक युवक संघ की स्थापना की। सन् 1930 में शिक्षकीय पद से इस्तीफा देकर सविनय अवज्ञा आंदोलन में भाग लिया। सन् 1930 के जंगल सत्याग्रह में भाग लेकर गिरफ्तार हुए। 7 माह की सजा तथा 100 रूपये जुर्माना हुआ। सन 1931 में रिहा हुए । बाद में कानपुर में प्रताप में सह संपादक हुए। सन् 1937में वर्धा में बुनियादी शिक्षा प्रशिक्षण केन्द्र व महिला आश्रम में शिक्षक हो गए। सन् 1942 के आंदोलन में भाग लेने के कारण 22 अगस्त 1942 को गिरफ्तार हुए और 1944 के मध्य में लगभगर 2 वर्ष के बाद रिहा हुए । इस गिरफ्तारी के समय आप महिला आश्रम वर्धा में अध्यापक थे । श्री दीक्षित गांधी जी के साथ लगभग दस वर्षो तक कार्य करते रहे । श्री दीक्षित का सत्तर वर्ष की आयु में  1 जनवरी 1976 को नई दिल्ली में निधन हुआ ।
आंनद का राजपथ - सीताचरण दीक्षित की पुस्‍तक का आवरण