शनिवार, 14 मई 2016

पुराने पते पर
आ जाती है अब भी
भूले भटके कोई चिट्ठी
पता मेरा धूसर
गर्द में लिपटा
सिवा बूढ़े डाकिये की स्मृतियों के
नहीं जानता
कि रहता था कभी वहॉं कोंई
हेरता रहता था जो  बाट 

पुराने नाम से सालों बाद
दे जाता है कोई हांक

कपासी केश धरती छूती कमर
टेकते टेकते कुबड़ी
कोई वृद्धा माँ रही होगी
सोचा होगा फेरती चलूँ
माथे पर मेरे
हाथ

कुछ दरख्त
कोई फाख्ता
कोई घाट
भी करता होगा याद
अब मेरा कोई पता नहीं है
दर ब दर
शहर शहर
ताबील स्याही में
वहॉं हूँ जहॉ
ओ आमेना
कहीं नहीं मिलता हॅू।
तुम्हारे सामानों
में मेरा पता भी
चला गया ।