शनिवार, 31 अक्तूबर 2009

आदि‍म स्‍म़ति‍यों में गुजरात

मुझे ऐसा लगता है लोकगीतों में गहरी आदि‍म स्‍मति‍यॉं बहुत दि‍नों तक बनी रहती हैं । अतीत में आवागमन और दूर संचार की सुवि‍धाऍं न्‍यून थी । जीवन की कुशल क्षेम जानने के मौके बार बार नहीं मि‍लते थे । अकाल ,रोजगार , सत्‍ता परि‍वर्तन कई कारणों से लोगों का प्रवजन होता था । उन सब लोगों के साथ अंचल की यादें साथ जाती थी फि‍र चाहे भोजपुर के गि‍रि‍मि‍टया मजदूर हों या हो गुजरात से नि‍माड आने वाली जाति‍यॉं । अंचल की स्‍म़ति‍यॉं गीतों में धमकती रहती थी । नि‍माड के गीतों में गुजरात कैसे आता है -
कुण भाई जासे चाकरी
कुण भाई जासे गढ रे गुजरात
मोठा भाई जासे चाकरी
छोटा भाई जासे गढ रे गुजरात
यह गीत राखी के अवसर पर गाया जाता है ।
बालि‍काओं के पर्व संजा में वे गाती हैं
चॉंद गयो गुजरात
की हि‍रनी का बडा बडा दात
की थारी बाई मारगी
की कूटगी संजा
तू थारा घर जा
या फि‍र रणुबाई का यह गीत
थारा काई काई रुप बखाणु हो रणुबाई
तू सोरठ देश सी आई हो
नि‍माड अंचल की कई जाति‍यॉं अतीत में गुजरात से आई थी । कहॉ से कब ठीक ठीक कि‍सी को पता नहीं। बस गीतों में वह याद वह सुवास बची रही । आज भी कई परि‍वारों के कुलदेवी देवता गुजरात में हैं । दरअसल जहॉ कुल देवता होते हैं उसी स्‍थान से जनता प्रवजन करती है यह अनुभव में आया है ।
यह सर्वेक्षण मैंने गोंड और कोरकू जनजाति‍ में भी कि‍या था । यह नि‍ष्‍कर्ष रहा ।