गुरुवार, 17 दिसंबर 2009

अपने बचपन की स्‍मतियॉं मुझे न जाने किस किस संसार में ले जाती रही हैं । उनपर लिखने का क्रम अभी कुछ दिनों तक रुका रहेगा । इन दिनों मैं पुन: कोरकू जनजाति के पर्व उत्‍सव त्‍यौहार अर्थात उनके जीवन के पूरे राग पर के‍न्द्रित गीतों को लिप्‍यां‍तरित कर समझने की कोशिश कर रहा हूं । अद़भुत गीत हैं ये बिल्‍कुल ताजे पत्‍तों और फूलों की तरह । बिल्‍कुल निष्‍कलुष बेदाग । विस्‍मित करते गीतों के संसार से गुजर रहा पुन: गुजर रहा हूं गूगे के गुड को महसूस कर रहा हूं क्‍या व्‍याख्‍या सचमुच कर सकता हूं उत्‍तर आता है शायद नहीं । एक गीत का आनंद नहीं निहित विचारों की अनुगूंज भी सुनिए -
झूड़ी सिरिंज


गिरबो कोन गिटिजकेन जा किरसाना कोन जाग लाकेन जा

गिरबो के किरिजकेन जा किरसाना कोन माय माये वा

गिरबो कोन रागेजका पेरावा किरसाना कोन आटा आटा वा

गिरबो आन्टे धड़की ओलेन जा

सिंगरुप ढाका ढिढोम आनुयेवा

गांव- टेमलाबाड़ी स्रोत व्यक्ति- देवकी बैठे
एक बुढिय़ा बच्चों को झोली में सुलाते हुए गा रही है - गरीब का बच्चा तो सोया हुआ है और किसान अर्थात अमीर का बेटा रो रहा है । गरीब का बच्चा चुपचाप है किन्तु किसान का बेटा मॉं मॉं कहकर पुकार रहा है । गरीब का बच्चा भूखा ही पड़ा है और किसान का बच्चा रोटी रोटी कहकर पुकार रहा है । गरीब मॉं धाड़की करने गई है वह शाम को लौटकर ही अपने बच्चे को दूध पिलाती है किन्तु अमीर किसान का बेटा....
धर्मेन्‍द्र पारे