बुधवार, 19 मई 2010

आज शाम को गांव जाने का तय तो नहीं था । फिर भी चला गया । शहर में पारा लगभग 45 या ऊपर ही रहा होगा । हरदा में तापमान बताने वाली कोई अधिकृत एजेसीं तो नहीं है आसपास के शहरों खंडवा, होशंगाबाद भोपाल से ही अनुमान होता है । बहरहाल, गांव गया । पेड़ लगाने के लिए जो गड़डे करवायें हैं वहॉं फेंसिंग करवाने के लिए जहूर से बात की । अनूपसिंह अर्थात अनोप ने उपयोगी सलाह दी । पता नहीं क्‍यों गांव से शहर लौटने का मन ही नहीं करता । आजीविका की जरुरत नहीं होती तो शायद कभी शहर नहीं लौटता । धीमी गति से मोटरसाईकल बढाई । पुरखों ने अपने परिवार के लिए एक मंदिर बनाया था । पुजारी वहॉं बैठा था चुपचाप । पता नहीं क्‍यों । उससे दुआ सलाम हुई आगे शिवपरसाद मिला । उसने भी कहा - भैया अब जल्‍दी निकलो रात हुई जायगी । मैं हरदा की तरफ बढा । कनारदा के पास आज भी नरवाई जल रही थी । इस बार किसानों ने एक नया काम किया है । नरवाई के साथ बूढे बडे बडे पेड़ों को भी जलाने का । एक दिन मैंने अपने गांव में ही जसवंत से पूछा था उसने बडी ही सहजता से उत्‍तर दिया कि अब - खान वाला गंज हुईगाज, आरु खेती थोडी थोडी । एका लेन लोग हुन झाड भी जलई रहयाच । मुझे समझ नहीं आता कि इतने उपयोगी पेडों को जलादेने से उनकी उत्‍पादकता कितनी बढ सकती है । क्‍या वाकई पेड हमारे जीवन के लिए ही खतरा बन गये हैं । बिल्‍कुल नहीं । ये किसान जिन्‍हें धरम की राजनीति करने वाले बडा सच्‍चा हिन्‍दू बताते हैं क्‍या सचमुच धरम करम जानते भी हैं । ये गौ माता के पूजक , ये आवला नवमी मनाने वाले , ये जल की पूजा करने वाले ये बरगद, आम ,पीपल ,लीम जामुन खाखरे को पूजने वाले और वृक्षों से ढेरों दवाई बनाने वाले कैसे होते जा रहे हैं । क्‍या इनका धरम पर से विश्‍वास घट रहा है । बचपन से ही मोहनपुर और गहाल के बीच एक इमली का पेड दिखता था । बचपन में सुनी कथाओं में इस पेड पर भूत रहते थे । रात में जब मैं बैलगाडी से यहॉं से निकलता था मारे डर के आंख मीच लेता था । आज वह पेड भी अधजला मिला । पता नहीं अब भूत कहॉं रहेगें । क्‍या गांव में ही आ जायेगें । क्‍या गांव में ही रहने लगेगें । फिर गांव वाले कहॉं जायेगें ।