लोक एवं जनजातीय संसार, सामयिक मुद़दो और मित्रों से विचार विमर्श का एक अनौपचारिक प्रयास
सोमवार, 24 मई 2010
मरते हुए पंछी जलते हुए शजर
नौतपा कल से प्रारंभ होगा । मुकेश पान वाले की दुकान पर चर्चा थी कि आज का तापमान 46 डिग्री था । पत्रकार दीपक दीवान के अनुसार कल 46 डिग्री तापमान था । असलियत जो भी हो गर्मी असहनीय थी । दोपहर में जैसे ही घर से निकल रहा था , पोर्च में एक नीलकंठ आकर गिरा थोडी देर तड़पा फिर नीचे पड़े पानी से शायद उसे राहत मिली होगी वह संभल कर उड़ गया । रात को जब गांव से लौट रहा था , लल्लू सर के घर ओटले पर संतू भैया पंडित और पप्पू भैया बैठे हुए मिल गये , इधर उधर की बातों के बाद संतू भैया ने बताया कि उनके गांव रिजगांव में तोते मरे हुए मिल रहे हैं । यह तो होना ही है । कल शाम को जब गांव से लौट रहा था मोहनपुर में नहर से उत्तर दिशा के खेतों में नरवाई जल रही थी । दो कोस आगे गहाल और धुरगाड़ा के बीच में भी कुछ खेतों में नरवाई जल रही थी । एक तो प्रकृति का प्रकोप दूसरा जलती हुई नरवाई जिसमें इस बार नया चलन डेढ़ सौ वर्ष तक पुराने पेड़ों को भी जलाना । आखिर ये बेचारे पंछी कहॉं जायें । कैसे बचें । श्राद्ध पक्ष में कौऐ नहीं मिलते और गांव के मृत जानवरों को खाने वाले गिद्ध नहीं दिखते । ऑंगन में फुदकने वाली चीड़ी बाई बहुत कम हो गई । क्या ऐसे ही । हम पूंजी की जिस हवस में भाग रहे हैं और प्रकृति का जैसा उपभोग याने विनाश कर रहे हैं वह हमारे अस्तित्व तक पहुंच रहा है । नरवत के गीतों में बच्चियॉं गाती है- अनसट कांटू वनसट काटूं, यो महुओ नी काटूं, यो महुओ म्हारा बीरा न लगायो । वीरा अर्थात भाई के लगाये महुए काटना तो छोडि़ए हम जला रहे हैं । मैं क्या कर सकता हँू यह सोचते हुए मैंने अपने खले में इक्कीस पेड लगाने की तैयारी की है । गांव में ग्यारसराम और जहूर को भी पौधे दूंगा वे भी पेड लगायेगें । दस बीस और लोगों से बात की है । राजनारायण ने भी आश्वासन दिया है । सोचता हूं मेरा गांव एक दिन हरा भरा होगा । मेरे आजा के आजा ताराचंद पटेल जिन्हें गांव में दाजी बाबा के नाम से जाना जाता है, ने भी गांव में पे ड लगाये थे । उनके लगाये पेड आज भी कुछ संख्या में बाकि हैं । गांव से लौटकर यह डायरी लिखने बैठ गया हँू । बहुत थक जाता हॅू । हरिमोहन और दिनेश यादव के मिस कॉल आ रहे हैं । वे गाली दे रहे हैं । अब उनसे कल ही मिलूंगा ।