लोक एवं जनजातीय संसार, सामयिक मुद़दो और मित्रों से विचार विमर्श का एक अनौपचारिक प्रयास
शनिवार, 8 मई 2010
बस कुछ कुछ यूं ही
कॉलेज में इन दिनों परीक्षा चल रही है । इन दिनों क्या ज्यादातर दिनों से परीक्षा ही चल रही है । नये साल की शुरुआत सेमेस्टर परीक्षा से और अब स्वाध्यायी वार्षिक पद्धति वाले विद्यार्थियों की । सुबह छह साढ़े छह के बीच कॉलेज जाता हॅू । साढे दस ग्यारह तक घर लौटता हॅू । फिर साढे बारह एक बजे से कक्षाऍं लेकर तीन बजे से परीक्षा में जुट जाता हॅू दूसरी पारी की । घर तक आते आते सात बज जाते हैं । थककर निढाल । आठ नौ बजे से दोस्तों से चर्चा बातचीत और बीती रात को पढी गई जानकारियों का आदान प्रदान । यह चलता है ग्यारह बजे तक । फिर अपना कम्प्यूटर इंटरनेट । संग्रहित ढेरों सामग्री जिनमें कोरकू, मराठी, उर्दू ,फारसी और अँग्रेजी के हजारों पृष्ठों की सामग्री संचयित है, में से किसी एक पर थोडा बहुत काम । मुझे नहीं लगता मेरे पास के इन हजारों पृष्ठों , कैसेट ,फोटो आदि का समूचा उपयोग कर पाऊंगा । यह जीवन अब थोडा लगने लगा है । अच्छा संदर्भ पुस्तकालय भी मेरे लिए सुलभ नहीं है । न शरीर दो बजे रात तक अब काम करने की इजाजत देता है । क्या होगा इस सामग्री का ।यह चिंता कभी कभी बेचैन करती है । मेरे पास कोरकू जनजाति और स्वतंत्रता आंदोलन , आंचलिक इतिहास ,लोक संस्कृति संबंधी ढेरों सामग्री है । इन्हें प्रकाशन योग्य कब बना सकूंगा स्वयं ही नही जानता । इस बीच दो चार और कामों में पांव फंसा रखा है । ज्ञानेश से बडी मुश्किल से हरदा संबंधी संस्मरणों की किताब और अर्चना भैंसारे से लोक कलाकारों के जीवन और शैली पर भी काम में सहयोग कर रहा हँू । किस हद तक यह तो ये लोग ही स्वयं दर्ज करेगें । अभी मेरी बडी ख्वाहिश है कि गांधीजी के रचनात्मक कामों के अभिन्न साथी सर्वोदयी दादा भाई नाईक अर्थात दत्तात्रय भीकाजी नाईक पर भी हरदा से एक पुस्तक प्रकाशित हो । यह अच्छी बात है कि ज्ञानेश चौबे की इसमें रुचि बढी है । अर्चना ने भोपाओं पर कुछ काम किया है और लखेरों - शीशगर पर भी कुछ कर रही है । पर सचमुच थका हुआ हँू । कुछ हताश भी । आज कॉलेज से छुटटी लेकर फिर गॉंव गया था । वक्त रहा तो कल उसपर--------