गुरुवार, 19 नवंबर 2009

भूतड़ी अमावस और अर्चना भैंसारे की शुरुआत


भूतड़ी अमावस और अर्चना भैंसारे की शुरुआत
बात की शुरुआत ऐसे नहीं हुई थी । पिछले कई सालों से अपन साल में आने वाली दोनों भूतडी अमावस्या पर बिला नागा नर्मदा के तट पर रात गुजारते हैं हजारों नहीं लाखों लोग आते जाते हैं दोनों घाटों पर । कई सालों से कई दोस्तों की एक अजीब सी ख्वाहिश सुनने को मिलती है अरे भाई आप जंगलों पहाडो और जनजातीय जीवन में खूब भ्रमण करते हो कभी हमें भी ले चला करो । ऐसा कहने वाले बहुत मिलते हैं पर जब भी मैंने प्रस्ताव रखा कम ही लोग अपनी सुख सुविधा कमाई धमाई को तिलांजलि देकर सफर तक आते हैं । सफर में मैं निपट अकेला ही रहता आया हूं। दो तीन लोग जरुर ऐसे हैं जिन्होंने कभी कभार मेरे साथ यात्रा की है । एक तो जगत के और कई पीढियो के भी मामा अर्थात हरिमोहन शर्मा । दूसरे मालवीयजी याने राजेन्द्र मालवीय फोटोग्राफर और न जाने क्या क्या अब मैं उन्हें आइडिया किंग कहने लगा हूं । बडे उर्वर और मेधावी इंसान हैं । एक हैं हरदा के ज्ञानजी मतलब ज्ञानेश चौबे । श्री प्रेमशंकर रघुवंशी के पटु शिष्य । इन तीनों के साथ कुछेक यादगार यात्राऍं की है । इनपर भी लिखना है ।


आज तो बात कुछ दूसरी ही । हरदा में एक युवतम कवियत्री हैं अर्चना भैंसारे । साहित्यिक पत्र पत्रिकाओं में उनकी बेहतरीन कविताऍं छपती रहती हैं । हॉल ही में उनका काव्य संग्रह भी आया है कुछ बूढी उदास औरतें । तो अपनी इसी अर्चना भैंसारे को पवन आ गई कि अब वह टेबल वर्क अर्थातघर घुस्सु शोध कार्य नहीं करेगी । वह मैदानों में पहाडों में जंगलों में जायेगी जिंदगी को जिंदगी में ही देखेगी । लोक को लोक से ही समझेगी । देखना है उसकी यह पवन कब तक कायम रहती है । हमारे इधर पवन का मतलब किसी दूसरी दुनिया की आत्मा का शरीर में आ जाने को कहा जाता है । पवन अक्सर पडिहार को आती है । पडिहार यानि जिसकी शरीर में देव आत्मा आती हो । तो अर्चना को पवन आई कि इस बार वह भी मेरे साथ भूतडी अमावस्या पर हंडिया नेमावर देखेगी । तैयारी हुई । हम सबकी वाजपेयी बहनजी मतलब शोभा वाजपेयी बीमार थी । गये कुल जमा पॉंच लोग । मेखला क़ष्णमूर्ति लंदन स्कूल ऑफ इकोनामिक्स की शोधार्थी, हरिमोहन शर्मा उर्फ मामा और अपने मालवीय जी । बाद में पता चला कि मेखला और मालवीयजी के बीच अघोषित रूप से ऐसी कुछ ठन गई कि पूरी रात मालवीयजी फुगे रहे । सुबह सुबह तक । हॉलाकि मेखला ने कहा कि वह फोटोग्राफी में कहीं से प्रतियोगी नहीं थी । रात भर हमने इस घाट से उस घाट मथवाड सुनी । पडिहारों के क्रिया कलाप, भक्तों की धाम सुनी देखी । देवों का नाचना देखा । मारण तारण उच्चाटन देखा । लगता है अर्चना भैसारे ने पहली बार इतना आनंद लिया । अब उसको लौ लग गई कि वह लोक जीवन को ही जानेगी समझेगी । दो चार दिन बार मेरे साथ भोपा लोगों के डेरे पर भी हो आई । इधर कुछ नाथ लोगों से भी मिल ली । कुछेक बार फोन पर भी लंबी उत्साह भरी बातें सुनाई । इधर प्रेमशंकरजी रघुवंशी जिन्हें हरदा के नौसिखिए नौजवान प्यार से उस्ताद भी कहते हैं , लगातार फोन पर अर्चना भैंसारे की फिकर करते रहे । अर्चना ने उनपर लघु शोध प्रबंध भी लिखा है । प्रेमशंकर रघुवंशी एक व्यक्तित्व क़तित्व ऐसा ही कुछ शीर्षक है । इसी विषय पर पह पीएच;डी भी करना चाहती थी । पर उसका सत्संग सोहबत कुछ भी कहिए कुछ यायावर टाइप लोगों के साथ हो गया फिलहाल वह ऐसी कुछ बात नहीं करती । अभी तो मकान बनाने की धुन में लग गई है । हजारीप्रसाद द्विवेदी की किताब तलाश रही है । मियां यह तो भूमिका थी भोपा और हरबोले नाथ और पारदी पर टिप्पणी शायद अगले ही ब्लाग पर हो सकेगी । राम राम ।

धर्मेन्द्र पारे