गुरुवार, 26 नवंबर 2009

जहर का इंजेन ,नवा तेली और अंबिका होटल के आलूगोंडे

जहर का इंजेक्‍शन ,नवा तेली और अंबिका होटल के आलूगोंडे



तीसरी कक्षा में हमें नेगी पंडितजी अर्थात स्व.गिरिजाशंकर नेगी पढ़ाने लगे वे आजीवन अविवाहित रहे। कलाकार एक नम्बर के थे। चित्र बनाने में उनको बड़ा मजा आता था। वे पेंसिल या चांक से बड़े सुंदर चित्र बनाते थे । वे चाहते थे मैं चित्रकार बन जाऊं पर बाकि के सभी गुरुजी चित्रकला से नफरत सी करते थे। यदि रंगीन पेंसिल से कुछ बनाओं तो वे डाटते डपटते। आज के बच्चों की तरह हमे रंगीन स्केच पेन पेंसिल कभी मयस्सर नहीं होते थे। हमारे पास आज की तरह कभी भी बैग नहीं रहे। कपड़े की एक थैली होती थी जिसमें एक स्लेट जो पट्टी कहलाती थी,बरतना,और गणित विज्ञान भूगोल और भाषा तथा सहायक वाचन की पुस्तक होती थी। इन्हीं विषयों की कापियॉं भी होती थी। एक आध नीव वाला पेन होता था। बस्ते पर स्याही के तरह तरह के दाग लगे होते थे। बस्ते पुरानी पैंटों या मोटे कपड़े से बनवाये जाते थे। हमने पहली बार एल्यूमीनियम जिसे कस्कूट कहते थे की पेटी पंकज बाफना के पास हैरत से देखी थी। पंकज बाफना नगर के प्रताप टाकिज के मालिक का लड़का था जो कुछ दिनों तक पांडुलाल तिवारी हेड मास्टर के कारण पढ़ने आया था। उसको छोडने कभी कभी कार भी आती थी। नेगी पंडितजी के कपड़े हमेशा क्रीज बने होते थे। शर्ट इन करने वाले वे हमारे इकलौते शिक्षक थे। बड़ा खूबसूरत पेन रखते थे और सिगरेट पीते थे। उनक जैसा सलीके के परिधान पहनेवाला मैंने जीवन में आज तक नहीं देखा। वे प्रायः गंभीर रहते थे। वे शाम को जलखरे पंडीतजी की पुस्तकों की दुकान या तिवारी स्टोर्स पर बैठे मिलते थे उनको देखकर हम छुप जाते थे। वे बहुत कम मारते थे। चैथी कक्षा में हमें चंद्रवंशी पंडीजी मिले। वे रामचरित मानस का बड़े मधुर स्वर में पाठ करते थे। इतना अच्छा की बस सुनते ही रह जाओ । इस कक्षा में  मेरे मोहल्ले का नवा तेली जिसका स्कूली नाम नर्मदा प्रसाद बद्रीप्रसाद राठौर था , वह भी फेल होकर साथी बन गया था। रामकिशन श्रीकिशन कुचबंदिया भी इसी कक्षा में मेरा मित्र बना। राजेश पूनमचंद सोनी भी इसी कक्षा में मिला। अब हमारा समूह नये नये दोस्तों से भर गया था। एक दिन स्कूल में अस्पताल से बी.सी.जी. का टीका लगाने कुछ लोग आये थे। हम बच्चों के बीच अक्सर यह अफवाह चलती रहती थी कि बच्चों को जहर का इंजेक्‍शन लगाकर पुल के नीचे गाड़ दिया जाता है। ऐसे हजार बच्चे गाड़े जायेगें तब जाकर ही पुल बन सकेगा। कम्पाउंडर ने स्प्रीट लैंप जला लिया था। इंजेक्‍शन तैयार हो रहा था। हम बच्चों को मौत बहुत निकट दिख रही थी। फैसला फौरन लेना था। कुछ वीर प्रकृति के बच्चों ने अगुवाई की बस्ते को पीठ की तरफ टांगा और खिड़की में से भदाभद कूद कर नाके वाली सड़क पर भाग गये। देखते ही देखते पूरी कक्षा खाली हो चुकी थी। सड़कर पर एकतित्र होकर हम जोर जोर से रोने लगे। दुख और गुस्से से हम भरे हुए थे। हमने पास में ही पड़े रोड़े , अद्दे, पत्थर उठाये और गहरे क्षोभ भे भरकर पंडितजियों की तो मॉं का .....भेन का ..... करते हुए पत्थर मारे और अपने अपने घर चले गये। मैंने घर आकर पिताजी को बड़े उत्साह से बताया कि आज तो स्कूल में जहर का इंजेक्शन लग रहा था पर हम कैसे वीरता पूर्वक भाग आये। उस समय टी बी का खौफ बहुत था । पिताजी को बी सी जी के टीके के बारे में कांदे गुरुजी ने बता दिया था। हां उन दिनों हम बच्चों में गुरुजियों के कई कोड और गुप्त, छाप नाम थे मसलन पदरु पंडीजी, कांदा गुरुजी, गुट्टी मास्टर, मिडिल , हाईस्कूल और कालेज पहंचते पहुंचते इनमें काफी इजाफा हो गया था। बल्कि इससे शहर में एक पूरी पंरपरा का विकास हुआ जिसे खिजाना कहते हैं। इसमें शहर के वकील , डाक्टर, दुकानदार तक शिकार हुए। खिजाने के कई उस्ताद हुए । अब पिताजी ने बहुत डाटा और कहा कि वापस स्कूल जाओ और टीका लगवाओ । मैंने किसी तरह तीन चार दोस्तों को समझाया और फिर हम चुपचाप स्कूल के भीतर पहंचे सहमते सहमते पंडीजी से टीका लगवा देने की गुजारिश की । सुनील नाई ने हमारा नेतृत्व किया । टीका लगा । पका । गुठली बनी । फिर निशान बना । आज तक है । चौथी कथा तक आते आते हम विद्रोह की भाषा सीख चुके थे । यदि शिक्षकों से नहीं पटती तो विद्यार्थी उठते और स्कूल पर रोते रोते ईट के अद्दों को फेंकते और पंडीजी को मां...भेन....वाली सर्व सुलभ गाली देते हुए स्कूल से भाग जाते । नवा और जल्लू ऐसा कर चुके थे । इसी कारण वे हमारे बीच अच्छे खासे प्रतिष्ठित हो चुके थे । नवा तो एकदम बिंदास था । गर्मी की छुट्टियों में वह अंबिका होटल पर काम करता था। वहां की होटल में बहुत बड़े बड़े आलूगोडे बनते थे। नवा कभी कभी कुल्फी भी बेच लेता था। वह दोस्तों को बताता था कि होटल का मालिक उसको रोज एक आलूगोंडा खाने को देता है। हमारे मुंह में पानी आ जाता था। आपस में अपने घर वालों को कोसते थे उदास होकर तत्वतः निष्कर्ष निकालते - पन जे काम अपुन कां कर सकते हेंगे? हेना राजा ? हेना शंकर (सतत जारी......) 





धर्मेन्द्र पारे